यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, सितंबर 26, 2008

दूलह राम सीय दुलही री

दूलह राम, सीय दुलही री ।

घन दामिनि बर बरन हरन मन ।
सुन्दरता नख सिख निबही री ॥

तुलसीदास जोरी देखत सुख ।
सोभा अतुल न जात कही री ॥

रूप रासि विरचि बिरंचि मनु ।
सिला लमनि रति काम लही री ॥

कोई टिप्पणी नहीं: