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शनिवार, जून 04, 2022

डगमग डगमग डोले नैया ---- उमा

डगमग डगमग डोले नैया
पार लगावो तो जानूँ खेवैया 

चंचल चित्त को मोह ने घेरा, 
पग-पग पर है पाप का डेरा,
लाज रखो तो लाज रखैया
पार लगावो तो जानूँ खेवैया 

छाया चारों ओर अँधेरा, 
तुम बिन कौन सहारा मेरा,
हाथ पकड़ कर बंसी बजैया
पार लगावो तो जानूँ खेवैया 

भक्तों ने तुमको मनाया भजन से, 
मैं तो रिझाऊँ तुम्हें आँसुवन से,
गिरतों को आ के उठावो कन्हैया
पार लगावो तो जानूँ खेवैया 



शुक्रवार, जून 03, 2022

ये विनती रघुवीर गोसाई — उमा

ये बिनती रघुबीर गुसांई,
और आस बिस्वास भरोसो, हरो जीव जड़ताई,

चहौं न कुमति सुगति संपति कछु, रिधि सिधि बिपुल बड़ाई,
हेतू रहित अनुराग राम पद बढै अनुदिन अधिकाई,

कुटील करम लै जाहिं मोहिं जहं जहं अपनी बरिआई,
तहं तहं जनि छिन छोह छांडियो कमठ-अंड की नाईं,

या जग में जहं लगि या तनु की प्रीति प्रतीति सगाई,
ते सब तुलसी दास प्रभु ही सों होहिं सिमिटि इक ठाईं,

चितचोरन छबि रघुबीर की — उमा

चितचोरन छबि रघुबीर की।

बसी रहति निसि बासर हिय में
बिहरनि सरजू तीर की ।
चितचोरन छबि रघुबीर की...

उर मणि माल पीत पट राजत
चलनि मस्त गज गीर की ।
चितचोरन छबि रघुबीर की...

सिया अलि लखि अवध छैल छबि
सुधि नहीं भूषण चीर की ।
चितचोरन छबि रघुबीर की...


गुरुवार, जून 02, 2022

ऐसो को उदार जग माहीं - उमा

ऐसो को उदार जग माहीं ।
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरस कोउ नाहीं ॥

जो गति जोग बिराग जतन करि, नहिं पावत मुनि ज्ञानी ।
सो गति देत गीध सबरी कहँ, प्रभु न बहुत जिय जानी ॥

जो संपति दस सीस अरप करि, रावण सिव पहँ लीन्हीं ।
सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच-सहित हरि दीन्हीं ॥

तुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो ।
तो भजु राम, काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो ॥

बुधवार, जून 01, 2022

नाथ मेरो कहा बिगरेगो - उमा

नाथ मेरो कहा बिगरेगो
जायेगी लाज तुम्हारी

भूमि बिहीन पाण्डव सुत डोले, जब ते धरमसुत हारे
रही है ना पैज प्रबल पारथ की, कि भीम गदा महि डारी,
नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...

शूर समूह भूप सब बैठे, बड़े बड़े प्रणधारी,
भीष्म द्रोण कर्ण दुशासन, जिन्ह मोपे आपत डारी,
नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...

तुम तो दीनानाथ कहावत, मैं अति दीन दुखारी,
जैसे जल बिन मीन जो तड़पै, सोई गति भई हमारी,
नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...

मम पति पांच, पांचन के तुम पति, मो पत काहे बिसारी,
सूर श्याम पाछे पछितहिओ, कि जब मोहे देखो उघारी,
नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...

सुनि कान्हा तेरी बांसुरी - उमा

सुनि कान्हा तेरी बांसुरी,
बांसुरी तेरी जादू भरी॥

सारा गोकुल लगा झूमने,
क्या अजब मोहिनी छा गयी,
मुग्ध यमुना थिरकने लगी,
तान बंसी की तड़पा गयी,
छवि मन में बसी सांवरी।

सुनि कान्हा तेरी बांसुरी
बांसुरी तेरी जादू भरी

हौले से कोई धुन छेड़ के,
तेरी मुरली तो चुप हो गयी,
सात सुर भंवर में  कहीं,
मेरे मन की तरी खो गयी,
मैं तो जैसे हुई बावरी।

सुनि कान्हा तेरी बांसुरी,
बांसुरी तेरी जादू भरी।