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बुधवार, जुलाई 03, 2024


आज दो जुलाई २०२४ ,महर्षि डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर उनकी महनीय कृपा की याद आना स्वभाविक है !

उनकी  महनीय कृपा से  ही आत्मशक्ति पा कर मेरा एक ही ध्येय ,एक ही कार्य ,एक ही लगन ,एक ही चिंतन रह गया है -

”सर्व शक्तिमान परम पुरुष  परमात्मा के गुणों का गान करना ,उनकी महिमा का बखान करना ,भक्तिभाव भरे गीत संगीत द्वारा "उनकी" अनंत कृपाओं के लिए अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करना, १

मुझे इन समग्र क्रिया कलापों में अपने ऊपर प्यारे प्रभु की अनंत कृपा के दर्शन होते हैं , परमानंद का आभास होता है ,आनंद आता है  ! ऐसा क्यूँ न हो ,उन्होंने हमें शब्द एवं स्वर रचने की क्षमता दी , गीत गाने के लिए कंठ और वाद्य बजाने के लिए हाथों में शक्ति दी ! "उनसे" प्राप्त इस क्षमता का उपयोग कर  और  पत्र पुष्प सदृश्य  अपनी रचनाये "उनके" श्री चरणों पर अर्पित कर हम  संतुष्ट होते हैं,  परम शान्ति का अनुभव करते हैं , आनंदित   होते हैं ! मेरी सबके लिये यही शुभकामना है ====

राम कृपा से सद्गुरु पाओ आजीवन आनंद मनाओ !

उंगली कभी न  उनकी  छोडो जीवन पथ पर बढ़ते जाओ !

क्योकि ====

समय शिला पर खिली हुई है "गुरू"-चरणों की दिव्य धूप !      

आंसूँ पोछो,आँखें खोलो ,देखो चहुदिश "गुरू" का स्वरूप !!


सद्गुरु कभी निकट आते हैं   मिलक्रर पुनःबिछड जाते हैं !

प्रियजन  अब वह दूर नहीं हैं "वह" हर ओर नजर आते हैं !! 


 वो अब हम सब के अंतर में बैठे हैं बन कर यादें ! 

 केवल एक नाम लेने से , पूरी होंगी सभी मुरादें 1

महर्षि डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर उनके सांनिध्य में बिताये पलों की याद से उनको शत शत सादर नमन करता हूँ

सन २००७ में , मैं गुरुदेव श्री श्री विश्वमित्र जी महराज के दर्शनार्थ श्री राम शरणम गया !  एक चमत्कार सा हुआ - महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त कर , प्रकोष्ठ से बाहर निकला ही था कि ऐसा लगा जैसे महाराज जी ने कुछ कहा ! पलट कर उनके निकट गया ! महराज जी , अलमारी से निकाल कर कुछ लाए और उसे मेरे हाथों में देते हुए कुछ इस प्रकार बोले ," श्रीवास्तव जी , आपके हृदय में श्री  गुरुचरणों की मधुर स्मृति सतत बनी रहती है ! मैं बाबा गुरु के वही श्रीचरण आपको दे रहा हूँ  ! महर्षि  विश्वामित्र जी ने मुझे सद्गुरु चरणों का वह चित्र   देकर , मानो मुझे जीवन का  एक सुदृढ़ अवलंबन सौंपा ! धन्य हुआ मैं सद्गुरु पा के !

आज उनसे उनकी महनीय कृपा को ही इस भाव -गीत को उन्हें सुना कर मांग रहा हूँ

फेरो न कृपा की नज़र,*

*हे गुरुवर.......*

नयन कटोरे भर भर तुमने, 
दिव्य प्रेम रस पान कराया।
जलते मरुथल से अन्तर पर ,
तुमने अमृत रस बरसाया।।
झरने दो निर्झर।

फेरो न कृपा की नज़र,
हे गुरुवर।

भटकूंगा दर दर  हे स्वामी ,
यदि तुमने निज हाथ छुड़ाया  ।
शरण कहाँ पाऊंगा जग में ,
यदि न मिली चरणों की छाया।।
 हूं  तुम पर निर्भर ।

फेरो न कृपा की नज़र,
हे गुरुवर।

रविवार, मार्च 03, 2024

भोला की भजन शाला - 1


निःशुल्क सीखिये और जी भर के गाइए,
सीखने के साथ साथ अपने इष्ट को रिझाइये,
मन वांछित फल पाइये

इन में से अनेक भजनों के लिखने और गाने की प्रेरणा पारम्परिक रचनाओं से मिली है, पुरातन उन सभी अज्ञेय रचनाकारों एवं संगीतज्ञों का गुरुत्व शिरोधार्य है !

  1. अंजनी सुत हे पवन दुलारे , हनुमत लाल राम के प्यारे !! शब्द स्वर = भोला 
  2. अब तुम कब सुमिरोगे राम जिवडा दो दिन को मेहमान !! पारंपरिक - एमपी3
  3. गुरु की कृपा दृष्टि हो जिसपर !! शब्द स्वर = भोला 
  4. गुरु चरनन में ध्यान लगाऊँ !! प्रेरणा स्रोत - पंडित जसराज 
  5. गुरु बिन कौन सम्हारे !! शब्द स्वर = भोला 
  6. जय शिव शंकर औगढ़ दानी, विश्वनाथ विश्वम्भर स्वामी !! शब्द स्वर = भोला 
  7. तुझसे हमने दिल है लगाया !! शब्द स्वर = भोला 
  8. तेरे चरणों में प्यारे अय पिता !! प्रेरणा - राधास्वामी सत्संग - स्वर = भोला 
  9. दाता राम दिए ही जाता, भिक्षुक मन पर नहीं अघाता !! शब्द स्वर = भोला 
  10. पायो निधि राम नाम !! शब्द स्वर - व्ही के मेहरोत्रा तथा भोला 
  11. बिरज में धूम मचायो कान्हा !! होली !! = स्वर भोला 
  12. रहे जनम जनम तेरा ध्यान यही वर दो मेरे राम !! प्रेरणा पारम्परिक - शब्द-स्वर = भोला 
  13. राम बोलो राम !! शब्द स्वर = भोला 
  14. राम राम काहे ना बोले !! प्रेरणा - मिश्र बन्धु - संशोधित शब्द एवं स्वर = भोला 
  15. राम राम बोलो !! शब्द स्वर = भोला - एमपी3
  16. राम हि राम बस राम हि राम, और नाही काहू सों काम !! शब्द स्वर = भोला 
  17. रोम रोम में रमा हुआ है मेरा राम रमैया तू !! शब्द स्वर = भोला 
  18. शंकर शिव शम्भु साधु संतन सुखकारी !! शब्द स्वर = भोला 
  19. श्याम आये नैनों में बन गयी मैं सांवरी !! प्रेरणा - आकाशवाणी = स्वर - भोला 
  20. हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम !! पारंपरिक - स्वर = भोला 
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महावीर बिनवउँ हनुमाना से साभार उद्धृत 

शनिवार, जून 04, 2022

डगमग डगमग डोले नैया ---- उमा

डगमग डगमग डोले नैया
पार लगावो तो जानूँ खेवैया 

चंचल चित्त को मोह ने घेरा, 
पग-पग पर है पाप का डेरा,
लाज रखो तो लाज रखैया
पार लगावो तो जानूँ खेवैया 

छाया चारों ओर अँधेरा, 
तुम बिन कौन सहारा मेरा,
हाथ पकड़ कर बंसी बजैया
पार लगावो तो जानूँ खेवैया 

भक्तों ने तुमको मनाया भजन से, 
मैं तो रिझाऊँ तुम्हें आँसुवन से,
गिरतों को आ के उठावो कन्हैया
पार लगावो तो जानूँ खेवैया 



शुक्रवार, जून 03, 2022

ये विनती रघुवीर गोसाई — उमा

ये बिनती रघुबीर गुसांई,
और आस बिस्वास भरोसो, हरो जीव जड़ताई,

चहौं न कुमति सुगति संपति कछु, रिधि सिधि बिपुल बड़ाई,
हेतू रहित अनुराग राम पद बढै अनुदिन अधिकाई,

कुटील करम लै जाहिं मोहिं जहं जहं अपनी बरिआई,
तहं तहं जनि छिन छोह छांडियो कमठ-अंड की नाईं,

या जग में जहं लगि या तनु की प्रीति प्रतीति सगाई,
ते सब तुलसी दास प्रभु ही सों होहिं सिमिटि इक ठाईं,

चितचोरन छबि रघुबीर की — उमा

चितचोरन छबि रघुबीर की।

बसी रहति निसि बासर हिय में
बिहरनि सरजू तीर की ।
चितचोरन छबि रघुबीर की...

उर मणि माल पीत पट राजत
चलनि मस्त गज गीर की ।
चितचोरन छबि रघुबीर की...

सिया अलि लखि अवध छैल छबि
सुधि नहीं भूषण चीर की ।
चितचोरन छबि रघुबीर की...


गुरुवार, जून 02, 2022

ऐसो को उदार जग माहीं - उमा

ऐसो को उदार जग माहीं ।
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरस कोउ नाहीं ॥

जो गति जोग बिराग जतन करि, नहिं पावत मुनि ज्ञानी ।
सो गति देत गीध सबरी कहँ, प्रभु न बहुत जिय जानी ॥

जो संपति दस सीस अरप करि, रावण सिव पहँ लीन्हीं ।
सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच-सहित हरि दीन्हीं ॥

तुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो ।
तो भजु राम, काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो ॥

बुधवार, जून 01, 2022

नाथ मेरो कहा बिगरेगो - उमा

नाथ मेरो कहा बिगरेगो
जायेगी लाज तुम्हारी

भूमि बिहीन पाण्डव सुत डोले, जब ते धरमसुत हारे
रही है ना पैज प्रबल पारथ की, कि भीम गदा महि डारी,
नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...

शूर समूह भूप सब बैठे, बड़े बड़े प्रणधारी,
भीष्म द्रोण कर्ण दुशासन, जिन्ह मोपे आपत डारी,
नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...

तुम तो दीनानाथ कहावत, मैं अति दीन दुखारी,
जैसे जल बिन मीन जो तड़पै, सोई गति भई हमारी,
नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...

मम पति पांच, पांचन के तुम पति, मो पत काहे बिसारी,
सूर श्याम पाछे पछितहिओ, कि जब मोहे देखो उघारी,
नाथ मेरो कहा बिगरेगो ...

सुनि कान्हा तेरी बांसुरी - उमा

सुनि कान्हा तेरी बांसुरी,
बांसुरी तेरी जादू भरी॥

सारा गोकुल लगा झूमने,
क्या अजब मोहिनी छा गयी,
मुग्ध यमुना थिरकने लगी,
तान बंसी की तड़पा गयी,
छवि मन में बसी सांवरी।

सुनि कान्हा तेरी बांसुरी
बांसुरी तेरी जादू भरी

हौले से कोई धुन छेड़ के,
तेरी मुरली तो चुप हो गयी,
सात सुर भंवर में  कहीं,
मेरे मन की तरी खो गयी,
मैं तो जैसे हुई बावरी।

सुनि कान्हा तेरी बांसुरी,
बांसुरी तेरी जादू भरी।


मंगलवार, मई 31, 2022

म्हाणे चाकर राखो जी - उमा

म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ...

चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरशन पास्यूँ।
वृन्दावन की कुञ्ज गलिन में गोविन्द लीला गास्यूँ।
म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ...

ऊँचे ऊँचे महल बनाऊँ बिच बिच राखूँ क्यारी।
साँवरिया के दरशन पाऊँ पहर कुसुम्बी साड़ी।
म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ...

मीराँ के प्रभु गहर गम्भीरा हृदय धरो री धीरा।
आधी रात प्रभु दरशन दीन्हे प्रेम नदी के तीरा।
म्हाणे चाकर राखो जी, गिरधारी ...


चाकरी में दरसन पास्यूँ सुमरन पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ  तीनूं बाताँ सरसी।

मोर मुगट पीताम्बर सौहे गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे  मोहन मुरली वाला।

सोमवार, मई 30, 2022

यदि नाथ का नाम दयानिधि है - उमा


यदि नाथ का नाम दयानिधि है, तो दया भी करेंगे कभी न कभी ।
दुखहारी हरी, दुखिया जन के, दुख क्लेश हरेगें कभी न कभी ।

जिस अंग की शोभा सुहावनी है, जिस श्यामल रंग में मोहनी है ।
उस रूप सुधा से स्नेहियों के, दृग प्याले भरेगें कभी न कभी ।

जहां गीध निषाद का आदर है, जहां व्याध अजामिल का घर है ।
वही वेश बनाके उसी घर में, हम जा ठहरेगें कभी न कभी ।

करुणानिधि नाम सुनाया जिन्हें, कर्णामृत पान कराया जिन्हें ।
सरकार अदालत में ये गवाह, सभी गुजरेगें कभी न कभी ।

हम द्वार में आपके आके पड़े, मुद्दत से इसी जिद पर हैं अड़े ।
भव-सिंधु तरे जो बड़े से बड़े, तो ये 'बिन्दु' तरेगें कभी न कभी ।