उनकी महनीय कृपा से ही आत्मशक्ति पा कर मेरा एक ही ध्येय ,एक ही कार्य ,एक ही लगन ,एक ही चिंतन रह गया है -
”सर्व शक्तिमान परम पुरुष परमात्मा के गुणों का गान करना ,उनकी महिमा का बखान करना ,भक्तिभाव भरे गीत संगीत द्वारा "उनकी" अनंत कृपाओं के लिए अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करना, १
मुझे इन समग्र क्रिया कलापों में अपने ऊपर प्यारे प्रभु की अनंत कृपा के दर्शन होते हैं , परमानंद का आभास होता है ,आनंद आता है ! ऐसा क्यूँ न हो ,उन्होंने हमें शब्द एवं स्वर रचने की क्षमता दी , गीत गाने के लिए कंठ और वाद्य बजाने के लिए हाथों में शक्ति दी ! "उनसे" प्राप्त इस क्षमता का उपयोग कर और पत्र पुष्प सदृश्य अपनी रचनाये "उनके" श्री चरणों पर अर्पित कर हम संतुष्ट होते हैं, परम शान्ति का अनुभव करते हैं , आनंदित होते हैं ! मेरी सबके लिये यही शुभकामना है ====
राम कृपा से सद्गुरु पाओ आजीवन आनंद मनाओ !
उंगली कभी न उनकी छोडो जीवन पथ पर बढ़ते जाओ !
क्योकि ====
समय शिला पर खिली हुई है "गुरू"-चरणों की दिव्य धूप !
आंसूँ पोछो,आँखें खोलो ,देखो चहुदिश "गुरू" का स्वरूप !!
सद्गुरु कभी निकट आते हैं मिलक्रर पुनःबिछड जाते हैं !
प्रियजन अब वह दूर नहीं हैं "वह" हर ओर नजर आते हैं !!
वो अब हम सब के अंतर में बैठे हैं बन कर यादें !
केवल एक नाम लेने से , पूरी होंगी सभी मुरादें 1
महर्षि डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर उनके सांनिध्य में बिताये पलों की याद से उनको शत शत सादर नमन करता हूँ
सन २००७ में , मैं गुरुदेव श्री श्री विश्वमित्र जी महराज के दर्शनार्थ श्री राम शरणम गया ! एक चमत्कार सा हुआ - महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त कर , प्रकोष्ठ से बाहर निकला ही था कि ऐसा लगा जैसे महाराज जी ने कुछ कहा ! पलट कर उनके निकट गया ! महराज जी , अलमारी से निकाल कर कुछ लाए और उसे मेरे हाथों में देते हुए कुछ इस प्रकार बोले ," श्रीवास्तव जी , आपके हृदय में श्री गुरुचरणों की मधुर स्मृति सतत बनी रहती है ! मैं बाबा गुरु के वही श्रीचरण आपको दे रहा हूँ ! महर्षि विश्वामित्र जी ने मुझे सद्गुरु चरणों का वह चित्र देकर , मानो मुझे जीवन का एक सुदृढ़ अवलंबन सौंपा ! धन्य हुआ मैं सद्गुरु पा के !
आज उनसे उनकी महनीय कृपा को ही इस भाव -गीत को उन्हें सुना कर मांग रहा हूँ
फेरो न कृपा की नज़र,*