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गुरुवार, जून 02, 2022

ऐसो को उदार जग माहीं - उमा

ऐसो को उदार जग माहीं ।
बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर, राम सरस कोउ नाहीं ॥

जो गति जोग बिराग जतन करि, नहिं पावत मुनि ज्ञानी ।
सो गति देत गीध सबरी कहँ, प्रभु न बहुत जिय जानी ॥

जो संपति दस सीस अरप करि, रावण सिव पहँ लीन्हीं ।
सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच-सहित हरि दीन्हीं ॥

तुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो ।
तो भजु राम, काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो ॥

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