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यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ।
कि जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ॥
नहीं स्वीकार करते हैं निमंत्रण नृप सुयोधन का ।
विदुर के घर पहुंचकर भोग छिलकों का लगाते हैं ॥
कि जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ।
यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ॥
न आये मधुपुरी से गोपियों की दुख कथा सुनकर ।
द्रुपदाजी की दशा पर द्वारका से दौड़ आते हैं ॥
यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ।
न रोये वन-गमन में श्री पिता की वेदनाओं पर ।
उठा कर गीध को निज गोद में आंसू बहाते हैं ॥
न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ।
यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ॥
कठिनता से चरण धोकर मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को ।
वो चरणोदक स्वयं केवट के घर जाकर लुटाते हैं ॥
कि जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं ।
यही हरि भक्त कहते हैं, यही सद्-ग्रन्थ गाते हैं ॥
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