रघुवर तुमको मेरी लाज ।
सदा सदा मैं शरण तिहारी,
तुम हो गरीब निवाज़ ॥
पतित उधारण विरद तिहारो,
श्रवनन सुनी आवाज ।
तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज …
हौँ तो पतित पुरातन कहिए,
पार उतारो जहाज ॥
तुलसीदास पर किरपा कीजै,
भगति दान देहु आज ॥
तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज …
अघ खंडन दुःख भन्जन जन के,
यही तिहारो काज ।
तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज …
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