यह रचना - "सर्वेश्वरी जय जय जगदीश्वरी माँ", मेरे परम प्रिय मित्र एवं गुरुभाई श्री हरि ओम् शरण जी" के एक पुरातन भजन की धुन पर आधारित है.
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सर्वेश्वरी, जय जय जगदीश्वरी माँ, तेरा ही एक सहारा है
तेरी आंचल की छाहँ छोड़ अब नहीं कहीं निस्तारा है सर्वेश्वरी जय जय ------------ मैं अधमाधम, तू अघ हारिणी ! मैं पतित अशुभ, तू शुभ कारिणी हें ज्योतिपुंज, तूने मेरे मन का मेटा अंधियारा है !! सर्वेश्वरी, जय जय -------------- तेरी ममता पाकर किसने ना अपना भाग्य सराहा है कोई भी खाली नहीं गया जो तेरे दर पर आया है !! सर्वेश्वरी, जय जय -------------- अति दुर्लभ मानव तन पाकर आये हैं हम इस धरती पर, तेरी चौखट ना छोड़ेंगे ,अपना ये अंतिम द्वारा है !! सर्वेश्वरी, जय जय --------- =================== रचनाकार एवं गायक "भोला "
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