तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के।
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय॥
सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे।
बाहर के पट बंद कर ले अंतर के पट खोल रे।
माला फेरत जुग हुआ गया ना मन का फेर रे।
गया ना मन का फेर रे।
हाथ का मनका छोड़ दे मन का मनका फेर॥
दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय रे।
सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे।
दुख में करता याद रे।
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद॥
Listen to this bhajan by Mukesh by clicking
here.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें