किस देवता ने आज मेरा दिल चुरा लिया
दुनियां की खबर ना रही, तन को भुला दिया
रहता था पास में सदा लेकिन छिपा हुआ
करके दया दयाल ने परदा उठा लिया ।
मेरा.....
सूरज न था न चांद था, बिजली न थी वहां
इकदम वो अजब शान का जलवा दिखा दिया ।
मेरा....
फिरके जो आंख खोल कर ढ़ूंढ़न लगा उसे
गायब था नजर से कोर्इ फिर पास पा लिया ।
मेरा....
करके कसूर माफ मेरे जनम जनम के
"ब्रहमानंद' अपने चरण में मुझको लगा लिया ।
मेरा....
बुधवार, मई 26, 2010
मेरे दिल में दिल का प्यारा है मगर मिलता नहीं
मेरे दिल में दिल का प्यारा, है मगर मिलता नहीं ।
चश्म में उसका नजारा, है मगर मिलता नहीं ।
ढ़ूंढ़ता फिरता हूँ उसको, दर बदर और कू ब कू ।
हर जगह वो आशिकारा, है मगर मिलता नहीं ।
ए रकीबो गर खबर हो, तो लिल्लाह दो जबाव ।
मेरे घर में मेरा प्यारा, है मगर मिलता नहीं ।
शेख ढ़ूढ़ें है हरम में, और निरहमन देर में ।
हर जगह उसको पुकारा, है मगर मिलता नहीं ।
मैं पड़ा जख्मी तड़पता हूँ, फिराके यार में ।
नीर भिजगा उसने मारा, है मगर मिलता नहीं ।
मेरे अन्दर वो ही खेले, औ खिलावे मुझको वोह
घर में दुल्हन का दुल्हारा, है मगर मिलता नहीं ।
चश्म में उसका नजारा, है मगर मिलता नहीं ।
ढ़ूंढ़ता फिरता हूँ उसको, दर बदर और कू ब कू ।
हर जगह वो आशिकारा, है मगर मिलता नहीं ।
ए रकीबो गर खबर हो, तो लिल्लाह दो जबाव ।
मेरे घर में मेरा प्यारा, है मगर मिलता नहीं ।
शेख ढ़ूढ़ें है हरम में, और निरहमन देर में ।
हर जगह उसको पुकारा, है मगर मिलता नहीं ।
मैं पड़ा जख्मी तड़पता हूँ, फिराके यार में ।
नीर भिजगा उसने मारा, है मगर मिलता नहीं ।
मेरे अन्दर वो ही खेले, औ खिलावे मुझको वोह
घर में दुल्हन का दुल्हारा, है मगर मिलता नहीं ।
शुक्रवार, मई 07, 2010
भजन - सुमरन कर ले मेरे मना
सुमरन कर ले मेरे मना,
तेरि बीति उमर हरि नाम बिना ।
कूप नीर बिनु धेनु छीर बिनु,
मंदिर दीप बिना,
जैसे तरूवर फल बिन हीना,
तैसे प्राणी हरि नाम बिना
देह नैन बिन, रैन चंद्र बिन,
धरती मेह बिना ।
जैसे पंडित वेद विहीना,
तैसे प्राणी हरि नाम बिना
काम क्रोध मद लोभ निहारो,
छोड़ दे अब संतजना,
कहे नानकशा सुन भगवंता,
या जग में नहिं कोइ अपना ।
सुमिरन कर ले मेरे मना,
तेरी बीती उम्र हरी नाम बिना ।
पंछी पंख बिना, हस्ती दन्त बिना, नारी पुरुष बिना,
जैसे पुत्र पिता बिना हीना, तैसे पुरुष हरी नाम बिना ।
कूप नीर बिना, धेनु खीर बिना, धरती मेह बिना,
जैसे तरुवर फल बिना हीना, तैसे पुरुष हरी नाम बिना ।
देह नैन बिना, रैन चन्द्र बिना, मंदिर दीप बिना,
जैसे पंडित वेद विहीना, तैसे पुरुष हरी नाम बिना ।
काम क्रोध मद लोभ निवारो, छोड़ विरोध तू संत जना ।
कहे नानक तू सुन भगवंता, इस जग में नहीं कोई अपना ॥
तेरि बीति उमर हरि नाम बिना ।
कूप नीर बिनु धेनु छीर बिनु,
मंदिर दीप बिना,
जैसे तरूवर फल बिन हीना,
तैसे प्राणी हरि नाम बिना
देह नैन बिन, रैन चंद्र बिन,
धरती मेह बिना ।
जैसे पंडित वेद विहीना,
तैसे प्राणी हरि नाम बिना
काम क्रोध मद लोभ निहारो,
छोड़ दे अब संतजना,
कहे नानकशा सुन भगवंता,
या जग में नहिं कोइ अपना ।
सुमिरन कर ले मेरे मना,
तेरी बीती उम्र हरी नाम बिना ।
पंछी पंख बिना, हस्ती दन्त बिना, नारी पुरुष बिना,
जैसे पुत्र पिता बिना हीना, तैसे पुरुष हरी नाम बिना ।
कूप नीर बिना, धेनु खीर बिना, धरती मेह बिना,
जैसे तरुवर फल बिना हीना, तैसे पुरुष हरी नाम बिना ।
देह नैन बिना, रैन चन्द्र बिना, मंदिर दीप बिना,
जैसे पंडित वेद विहीना, तैसे पुरुष हरी नाम बिना ।
काम क्रोध मद लोभ निवारो, छोड़ विरोध तू संत जना ।
कहे नानक तू सुन भगवंता, इस जग में नहीं कोई अपना ॥
भजन - तूँ ही मेरे रसना
bhajan : tu hi meri rasna
by Dadu Dayal
तूँ ही मेरे रसना तू ही मेरे बैना,
तूँ ही मेरे स्रवना तूँ ही मेरे नैना ।
तूँ ही मेरे आतम कँवल मँझारी,
तूँ ही मेरे मनसा तुम्ह परिवारी ।
तूँ ही मेरे मन हीं तूँ ही मेरे सांसा,
तूँ ही मेरे सुरतैं प्राण निवासा ।
तूँ ही मेरे नख सिख सकल सरीरा,
तूँ ही मेरे जिय रे ज्यूं जल नीरा ।
तुम्ह बिन मेरे और कोर्इ नाहीं,
तूँ ही मेरी जीवनि दादू माँही...
by Dadu Dayal
तूँ ही मेरे रसना तू ही मेरे बैना,
तूँ ही मेरे स्रवना तूँ ही मेरे नैना ।
तूँ ही मेरे आतम कँवल मँझारी,
तूँ ही मेरे मनसा तुम्ह परिवारी ।
तूँ ही मेरे मन हीं तूँ ही मेरे सांसा,
तूँ ही मेरे सुरतैं प्राण निवासा ।
तूँ ही मेरे नख सिख सकल सरीरा,
तूँ ही मेरे जिय रे ज्यूं जल नीरा ।
तुम्ह बिन मेरे और कोर्इ नाहीं,
तूँ ही मेरी जीवनि दादू माँही...
मंगलवार, मई 04, 2010
भजन - देव तुम्हारे कर्इ उपासक
देव तुम्हारे कर्इ उपासक, कर्इ ढ़ंग से आते हैं ।
सेवा में बहुमूल्य वस्तुयें, लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं ।
धूमधाम से साज बाज से, मंदिर में वे आते हैं ।
मुक्ता मणि बहुमूल्य वस्तुयें लाकर तुम्हें चढ़ाते है ।
मैं ही एक भिखारिन ऐसी, जो कुछ साथ नहीं लार्इ ।
हाय ! गले में पहिनाने को, फूलों का भी हार नहीं ।
मैं गरीब अति निष्किंचन कुछ भी भेंट नहीं लार्इ ।
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने को आर्इ ।
पूजा और पुजापा प्रभुवर, इसी भिखारिन को समझो ।
दान दक्षिणा और निछावर, इसी पुजारिन को समझो ।
मैं उन्मत्त प्रेम की लोभिन, हृदय दिखाने आर्इ हूँ ।
जो कुछ है बस यही पास है, इसे चढ़ाने आर्इ हूँ ।
चरणों में अर्पित है प्रभुवर, चाहो तो स्वीकार करो।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है, ठुकरा दो या प्यार करो ।
सेवा में बहुमूल्य वस्तुयें, लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं ।
धूमधाम से साज बाज से, मंदिर में वे आते हैं ।
मुक्ता मणि बहुमूल्य वस्तुयें लाकर तुम्हें चढ़ाते है ।
मैं ही एक भिखारिन ऐसी, जो कुछ साथ नहीं लार्इ ।
हाय ! गले में पहिनाने को, फूलों का भी हार नहीं ।
मैं गरीब अति निष्किंचन कुछ भी भेंट नहीं लार्इ ।
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने को आर्इ ।
पूजा और पुजापा प्रभुवर, इसी भिखारिन को समझो ।
दान दक्षिणा और निछावर, इसी पुजारिन को समझो ।
मैं उन्मत्त प्रेम की लोभिन, हृदय दिखाने आर्इ हूँ ।
जो कुछ है बस यही पास है, इसे चढ़ाने आर्इ हूँ ।
चरणों में अर्पित है प्रभुवर, चाहो तो स्वीकार करो।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है, ठुकरा दो या प्यार करो ।
भजन - मैं तों सांवरे के रंग राती
मैं तो सांवर के रंग राती ।
कोर्इ के पिया परदेश बसत हैं, लिख-लिख भेजै पाती ।
मेरा पिया मेरे हिये बसत है, ना कहुँ आती जाती ।
और सखी मद पी-पी माती, मैं बिन पीयाँ ही माती ।
प्रेमभठीकों मैं मद पीयो, छकी फिरूँ दिन-राती ।
पीहर बसूं न बसूं सास घर, सतगुरू संग लजानी ।
दासी मीरा के प्रभु गिरधर, हरि चरणन की मैं दासी ।
कोर्इ के पिया परदेश बसत हैं, लिख-लिख भेजै पाती ।
मेरा पिया मेरे हिये बसत है, ना कहुँ आती जाती ।
और सखी मद पी-पी माती, मैं बिन पीयाँ ही माती ।
प्रेमभठीकों मैं मद पीयो, छकी फिरूँ दिन-राती ।
पीहर बसूं न बसूं सास घर, सतगुरू संग लजानी ।
दासी मीरा के प्रभु गिरधर, हरि चरणन की मैं दासी ।
शनिवार, मई 01, 2010
भजन - तुम बिन मेरी कौन खबर ले
तुम बिन मेरी कौन खबर ले,
गोवर्धन गिरधारी ।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे,
कुंडल की छवि न्यारी रे ।
भरी सभा में द्रौपदी ठाढ़ी,
राखो लाज हमारी रे ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
चरण कमल बलिहारी रे ।
गोवर्धन गिरधारी ।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे,
कुंडल की छवि न्यारी रे ।
भरी सभा में द्रौपदी ठाढ़ी,
राखो लाज हमारी रे ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
चरण कमल बलिहारी रे ।
भजन - दीनन दुख हरन देव
दीनन दुख हरन देव, सन्तन सुखकारी ।
अजामील गीध व्याध, इनमें कहो कौन साध,
पंछी हूँ पद पढ़ात, गनिका-सी तारी ।
ध्रुव के सिर छत्र देत, प्रहलाद कहँ उबार देत,
भगत हेत बांध्यो सेत, लंकपुरी जारी ।
तंदुल देत रीझ जात, सागपात सों अघात,
गिनत नहीं जूँठे फल, खाटे-मीठे-खारी ।
गज को जब ग्राह ग्रस्यो, दुस्सासन चीर हरयो,
सभा बीच कृष्ण-कृष्ण द्रौपदी पुकारी ।
इतने में हरि आइ गये, बसनन आरूढ़ भये,
सूरदास द्वारे ठाढ़ो, आँधरो भिखारी ।
अजामील गीध व्याध, इनमें कहो कौन साध,
पंछी हूँ पद पढ़ात, गनिका-सी तारी ।
ध्रुव के सिर छत्र देत, प्रहलाद कहँ उबार देत,
भगत हेत बांध्यो सेत, लंकपुरी जारी ।
तंदुल देत रीझ जात, सागपात सों अघात,
गिनत नहीं जूँठे फल, खाटे-मीठे-खारी ।
गज को जब ग्राह ग्रस्यो, दुस्सासन चीर हरयो,
सभा बीच कृष्ण-कृष्ण द्रौपदी पुकारी ।
इतने में हरि आइ गये, बसनन आरूढ़ भये,
सूरदास द्वारे ठाढ़ो, आँधरो भिखारी ।
महावीर बिनवउँ हनुमाना ब्लॉग में नए भजन
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