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ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे .
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ..
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का .
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ..
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी .
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ..
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी .
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ..
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता .
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता ..
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति .
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ..
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे .
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे ..
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा .
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ..
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गुरुवार, सितंबर 24, 2009
आरती कुँज बिहारी की
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आरती कुँज बिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
गले में वैजन्ती माला, माला
बजावे मुरली मधुर बाला, बाला
श्रवण में कुण्डल झलकाला, झलकाला
नन्द के नन्द,
श्री आनन्द कन्द,
मोहन बॄज चन्द
राधिका रमण बिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
गगन सम अंग कान्ति काली, काली
राधिका चमक रही आली, आली
लसन में ठाड़े वनमाली, वनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चन्द्र सी झलक
ललित छवि श्यामा प्यारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
जहाँ से प्रगट भयी गंगा, गंगा
कलुष कलि हारिणि श्री गंगा, गंगा
स्मरण से होत मोह भंगा, भंगा
बसी शिव शीश,
जटा के बीच,
हरे अघ कीच
चरण छवि श्री बनवारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, बिलसै
देवता दरसन को तरसै, तरसै
गगन सों सुमन राशि बरसै, बरसै
अजेमुरचन
मधुर मृदंग
मालिनि संग
अतुल रति गोप कुमारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
चमकती उज्ज्वल तट रेणु, रेणु
बज रही बृन्दावन वेणु, वेणु
चहुँ दिसि गोपि काल धेनु, धेनु
कसक मृद मंग,
चाँदनि चन्द,
खटक भव भन्ज
टेर सुन दीन भिखारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
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आरती कुँज बिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
गले में वैजन्ती माला, माला
बजावे मुरली मधुर बाला, बाला
श्रवण में कुण्डल झलकाला, झलकाला
नन्द के नन्द,
श्री आनन्द कन्द,
मोहन बॄज चन्द
राधिका रमण बिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
गगन सम अंग कान्ति काली, काली
राधिका चमक रही आली, आली
लसन में ठाड़े वनमाली, वनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चन्द्र सी झलक
ललित छवि श्यामा प्यारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
जहाँ से प्रगट भयी गंगा, गंगा
कलुष कलि हारिणि श्री गंगा, गंगा
स्मरण से होत मोह भंगा, भंगा
बसी शिव शीश,
जटा के बीच,
हरे अघ कीच
चरण छवि श्री बनवारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, बिलसै
देवता दरसन को तरसै, तरसै
गगन सों सुमन राशि बरसै, बरसै
अजेमुरचन
मधुर मृदंग
मालिनि संग
अतुल रति गोप कुमारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
चमकती उज्ज्वल तट रेणु, रेणु
बज रही बृन्दावन वेणु, वेणु
चहुँ दिसि गोपि काल धेनु, धेनु
कसक मृद मंग,
चाँदनि चन्द,
खटक भव भन्ज
टेर सुन दीन भिखारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
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आरती हनुमानजी की
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आरति कीजै हनुमान लला की
आरति कीजै हनुमान लला की .
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ..
जाके बल से गिरिवर काँपे
रोग दोष जाके निकट न झाँके .
अंजनि पुत्र महा बलदायी
संतन के प्रभु सदा सहायी ..
आरति कीजै हनुमान लला की .
दे बीड़ा रघुनाथ पठाये
लंका जाय सिया सुधि लाये .
लंका सौ कोटि समुद्र सी खाई
जात पवनसुत बार न लाई ..
आरति कीजै हनुमान लला की .
लंका जारि असुर संघारे
सिया रामजी के काज संवारे .
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे
आन संजीवन प्राण उबारे ..
आरति कीजै हनुमान लला की .
पैठि पाताल तोड़ि यम कारे
अहिरावन की भुजा उखारे .
बाँये भुजा असुरदल मारे
दाहिने भुजा संत जन तारे ..
आरति कीजै हनुमान लला की .
सुर नर मुनि जन आरति उतारे
जय जय जय हनुमान उचारे .
कंचन थार कपूर लौ छाई
आरती करति अंजना माई ..
आरति कीजै हनुमान लला की .
जो हनुमान जी की आरति गावे
बसि वैकुण्ठ परम पद पावे .
आरति कीजै हनुमान लला की .
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ..
http://www.bhajans.org/aaratii/hanumaan.mp3
आरति कीजै हनुमान लला की
आरति कीजै हनुमान लला की .
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ..
जाके बल से गिरिवर काँपे
रोग दोष जाके निकट न झाँके .
अंजनि पुत्र महा बलदायी
संतन के प्रभु सदा सहायी ..
आरति कीजै हनुमान लला की .
दे बीड़ा रघुनाथ पठाये
लंका जाय सिया सुधि लाये .
लंका सौ कोटि समुद्र सी खाई
जात पवनसुत बार न लाई ..
आरति कीजै हनुमान लला की .
लंका जारि असुर संघारे
सिया रामजी के काज संवारे .
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे
आन संजीवन प्राण उबारे ..
आरति कीजै हनुमान लला की .
पैठि पाताल तोड़ि यम कारे
अहिरावन की भुजा उखारे .
बाँये भुजा असुरदल मारे
दाहिने भुजा संत जन तारे ..
आरति कीजै हनुमान लला की .
सुर नर मुनि जन आरति उतारे
जय जय जय हनुमान उचारे .
कंचन थार कपूर लौ छाई
आरती करति अंजना माई ..
आरति कीजै हनुमान लला की .
जो हनुमान जी की आरति गावे
बसि वैकुण्ठ परम पद पावे .
आरति कीजै हनुमान लला की .
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ..
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आरती श्री रामायणजी की
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आरती श्री रामायणजी की .
कीरति कलित ललित सिय पी की ..
गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद .
बालमीक बिग्यान बिसारद ..
सुक सनकादि सेष और सारद .
बरन पवन्सुत कीरति नीकी ..
गावत बेद पुरान अष्टदस .
छओं सास्त्र सब ग्रंथन को रस ..
मुनि जन धन संतन को सरबस .
सार अंस सम्म्मत सब ही की ..
गावत संतत संभु भवानी .
अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी ..
ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी .
कागभुसुंडि गरुड के ही की ..
कलि मल हरनि बिषय रस फीकी .
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की ..
दलन रोग भव भूरि अमी की .
तात मात सब बिधि तुलसी की ..
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आरती श्री रामायणजी की .
कीरति कलित ललित सिय पी की ..
गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद .
बालमीक बिग्यान बिसारद ..
सुक सनकादि सेष और सारद .
बरन पवन्सुत कीरति नीकी ..
गावत बेद पुरान अष्टदस .
छओं सास्त्र सब ग्रंथन को रस ..
मुनि जन धन संतन को सरबस .
सार अंस सम्म्मत सब ही की ..
गावत संतत संभु भवानी .
अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी ..
ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी .
कागभुसुंडि गरुड के ही की ..
कलि मल हरनि बिषय रस फीकी .
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की ..
दलन रोग भव भूरि अमी की .
तात मात सब बिधि तुलसी की ..
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आरती - जय जगदीश हरे
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जय जगदीश हरे प्रभु ! जय जगदीश हरे !
मायातीत, महेश्वर, मन-बच-बुद्धि परे ॥टेक॥
आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी ।
अतुल, अनंत, अनामय, अमित शक्ति-राशी ॥१॥ जय०
अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी ।
सत-चित-सुखमय, सुंदर, शिव, सत्ताधारी ॥२॥ जय०
विधि, हरि, शंकर, गणपति, सूर्य, शक्तिरूपा ।
विश्व-चराचर तुमही, तुमही जग भूपा ॥३॥ जय०
माता-पिता-पितामह-स्वामिसुह्रद भर्ता ।
विश्वोत्पादक-पालक-रक्षक-संहर्ता ॥४॥ जय०
साक्षी, शरण, सखा, प्रिय, प्रियतम, पूर्ण प्रभो ।
केवल काल कलानिधि, कालातीत विभो ॥५॥ जय०
राम कृष्ण, करुणामय, प्रेमामृत-सागर ।
मनमोहन, मुरलीधर, नित-नव नटनागर ॥६॥ जय०
सब विधिहीन, मलिनमति, हम अति पातकि जन ।
प्रभु-पद-विमुख अभागी कलि-कलुषित-तन-मन ॥७॥ जय०
आश्रय-दान दयार्णव ! हम सबको दीजे ।
पाप-ताप हर हरि ! सब, निज-जन कर लीजे ॥८॥ जय०
जय जगदीश हरे प्रभु ! जय जगदीश हरे !
मायातीत, महेश्वर, मन-बच-बुद्धि परे ॥टेक॥
आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी ।
अतुल, अनंत, अनामय, अमित शक्ति-राशी ॥१॥ जय०
अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी ।
सत-चित-सुखमय, सुंदर, शिव, सत्ताधारी ॥२॥ जय०
विधि, हरि, शंकर, गणपति, सूर्य, शक्तिरूपा ।
विश्व-चराचर तुमही, तुमही जग भूपा ॥३॥ जय०
माता-पिता-पितामह-स्वामिसुह्रद भर्ता ।
विश्वोत्पादक-पालक-रक्षक-संहर्ता ॥४॥ जय०
साक्षी, शरण, सखा, प्रिय, प्रियतम, पूर्ण प्रभो ।
केवल काल कलानिधि, कालातीत विभो ॥५॥ जय०
राम कृष्ण, करुणामय, प्रेमामृत-सागर ।
मनमोहन, मुरलीधर, नित-नव नटनागर ॥६॥ जय०
सब विधिहीन, मलिनमति, हम अति पातकि जन ।
प्रभु-पद-विमुख अभागी कलि-कलुषित-तन-मन ॥७॥ जय०
आश्रय-दान दयार्णव ! हम सबको दीजे ।
पाप-ताप हर हरि ! सब, निज-जन कर लीजे ॥८॥ जय०
आरती - हर हर हर महादेव
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हर हर हर महादेव !
सत्य, सनातन, सुंदर, शिव ! सबके स्वामी ।
अविकारी, अविनाशी, अज, अंतर्यामी ॥१॥ हर हर०
आदि अनंत, अनामय, अकल, कलाधारी ।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल अघहारी ॥२॥ हर हर०
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी ।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी ॥३॥ हर हर०
रक्षक, भक्षक, प्रेरक, तुम औढरदानी ।
साक्षी, परम अकर्ता कर्ता अभिमानी ॥४॥ हर हर०
मणिमय भवन निवासी, अति भोगी, रागी ।
सदा मसानबिहारी, योगी वैरागी ॥५॥ हर हर०
छाल, कपाल, गरल, गल, मुंडमाल व्याली ।
चिताभस्म तन, त्रिनयन, अयन महाकाली ॥६॥ हर हर०
प्रेत-पिशाच, सुसेवित पीत जटाधारी ।
विवसन, विकट रूपधर, रुद्र प्रलयकारी ॥७॥ हर हर०
शुभ्र, सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी ।
अतिकमनीय, शान्तिकर शिव मुनि मन हारी ॥८॥ हर हर०
निर्गुण, सगुण, निरंजन, जगमय नित्य प्रभो ।
कालरूप केवल, हर ! कालातीत विभो ॥९॥ हर हर०
सत-चित-आनँद, रसमय, करुणामय, धाता ।
प्रेम-सुधा-निधि, प्रियतम, अखिल विश्व-त्राता ॥१०॥ हर हर०
हम अति दीन, दयामय ! चरण-शरण दीजै ।
सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै ॥११॥ हर हर०
हर हर हर महादेव !
सत्य, सनातन, सुंदर, शिव ! सबके स्वामी ।
अविकारी, अविनाशी, अज, अंतर्यामी ॥१॥ हर हर०
आदि अनंत, अनामय, अकल, कलाधारी ।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल अघहारी ॥२॥ हर हर०
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी ।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी ॥३॥ हर हर०
रक्षक, भक्षक, प्रेरक, तुम औढरदानी ।
साक्षी, परम अकर्ता कर्ता अभिमानी ॥४॥ हर हर०
मणिमय भवन निवासी, अति भोगी, रागी ।
सदा मसानबिहारी, योगी वैरागी ॥५॥ हर हर०
छाल, कपाल, गरल, गल, मुंडमाल व्याली ।
चिताभस्म तन, त्रिनयन, अयन महाकाली ॥६॥ हर हर०
प्रेत-पिशाच, सुसेवित पीत जटाधारी ।
विवसन, विकट रूपधर, रुद्र प्रलयकारी ॥७॥ हर हर०
शुभ्र, सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी ।
अतिकमनीय, शान्तिकर शिव मुनि मन हारी ॥८॥ हर हर०
निर्गुण, सगुण, निरंजन, जगमय नित्य प्रभो ।
कालरूप केवल, हर ! कालातीत विभो ॥९॥ हर हर०
सत-चित-आनँद, रसमय, करुणामय, धाता ।
प्रेम-सुधा-निधि, प्रियतम, अखिल विश्व-त्राता ॥१०॥ हर हर०
हम अति दीन, दयामय ! चरण-शरण दीजै ।
सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै ॥११॥ हर हर०
शनिवार, सितंबर 19, 2009
कीर्तन - बन्धुगणो ! मिल कहो प्रेमसे (२)
बन्धुगणो ! मिल कहो प्रेमसे - 'रघुपति राघव राजाराम ।'
मुदित चित्तसे घोष करो पुनि - 'पतित पावन सीताराम ॥'
जिह्वा-जीवन सफल करो कह -'जय रघुनन्दन, जय सियाराम ।'
ह्रदय खोल बोलो मत चूको- 'जानकिवल्लभ सीताराम ॥'
गौर रुचिर, नवघनश्याम छबि, 'जय लक्ष्मण, जय जय श्रीराम ।'
अनुगत परम अनुज रघुबरके- 'भरत-सत्रुहन शोभाधाम ॥'
उभय सखा राघवके प्यारे -'कपिपति, लंकापति अभिराम ।'
परम भक्त निष्कामशिरोमणि 'जय श्रीमारुति पूरणकाम ॥'
अति उमंगसे बोलो संतत - 'रघुपति राघव राजाराम।'
मुक्तकंठ हो सदा पुकारो- 'पतित पावन सीताराम ॥'
http://www.archive.org/download/AratiGeetMala/AGM-bandhu-gano-raghupati-raaghav.mp3
मुदित चित्तसे घोष करो पुनि - 'पतित पावन सीताराम ॥'
जिह्वा-जीवन सफल करो कह -'जय रघुनन्दन, जय सियाराम ।'
ह्रदय खोल बोलो मत चूको- 'जानकिवल्लभ सीताराम ॥'
गौर रुचिर, नवघनश्याम छबि, 'जय लक्ष्मण, जय जय श्रीराम ।'
अनुगत परम अनुज रघुबरके- 'भरत-सत्रुहन शोभाधाम ॥'
उभय सखा राघवके प्यारे -'कपिपति, लंकापति अभिराम ।'
परम भक्त निष्कामशिरोमणि 'जय श्रीमारुति पूरणकाम ॥'
अति उमंगसे बोलो संतत - 'रघुपति राघव राजाराम।'
मुक्तकंठ हो सदा पुकारो- 'पतित पावन सीताराम ॥'
http://www.archive.org/download/AratiGeetMala/AGM-bandhu-gano-raghupati-raaghav.mp3
कीर्तन - बन्धुगणो ! मिलि कहो प्रेमसे (१)
बन्धुगणो ! मिलि कहो प्रेमसे 'यदुपति ब्रजपति श्यामा-श्याम ।'
मुदित चित्तसे घोष करो पुनि- 'पतित पावन राधेश्याम ॥'
जिह्वा-जीवन सफल करो कह- 'जय यदुनन्दन, जय घनश्याम ।'
ह्रदय खोल बोलो, मत चूको- 'रुक्मिणिवल्लभ श्याम श्याम ॥'
नव-नीरद-तनु, गौर मनोहर, 'जय श्रीमाधव जय बलराम।'
उभय सखा मोहनके प्यारे -'जय श्रीदामा, जयति सुदाम ॥'
परमभक्त निष्कामशिरोमणि- 'उद्धव-अर्जुन शोभाधाम।'
प्रेम-भक्ति-रस-लीन निरन्तर विदुर, 'विदुर-गृहिणी अभिराम ॥'
अति उमंगसे बोलो सन्तत- 'यदुपति ब्रजपति श्यामा-श्याम ।'
मुक्तकंठसे सदा पुकारो- 'पतित पावन राधेश्याम ॥'
http://www.archive.org/download/AratiGeetMala/AGM-bandhu-gano-jay-raadhe-raadhe.mp3
मुदित चित्तसे घोष करो पुनि- 'पतित पावन राधेश्याम ॥'
जिह्वा-जीवन सफल करो कह- 'जय यदुनन्दन, जय घनश्याम ।'
ह्रदय खोल बोलो, मत चूको- 'रुक्मिणिवल्लभ श्याम श्याम ॥'
नव-नीरद-तनु, गौर मनोहर, 'जय श्रीमाधव जय बलराम।'
उभय सखा मोहनके प्यारे -'जय श्रीदामा, जयति सुदाम ॥'
परमभक्त निष्कामशिरोमणि- 'उद्धव-अर्जुन शोभाधाम।'
प्रेम-भक्ति-रस-लीन निरन्तर विदुर, 'विदुर-गृहिणी अभिराम ॥'
अति उमंगसे बोलो सन्तत- 'यदुपति ब्रजपति श्यामा-श्याम ।'
मुक्तकंठसे सदा पुकारो- 'पतित पावन राधेश्याम ॥'
http://www.archive.org/download/AratiGeetMala/AGM-bandhu-gano-jay-raadhe-raadhe.mp3
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