Vaidya Param Guru Swami
Vaidya Param Guru Swami
जो शरण आया प्रभु की, वह सदा सुख पायेगा।
अगम भवसागर बिना श्रम पार वह कर जायेगा।।
नाम लेते ही प्रभु का, दूर होंगे कष्ट सब।
दुसह पीडायेँ मिटेंगी, ध्यान लग जायेगा जब।
शांति सुख के धाम का पट आप ही खुल जायेगा।।
अनगिनत जन पार उतरे, राम नाम जहाज से।
गीध गणिका गज तरे, प्रभु नाम के ही जाप से।
नाम नैया बैठ कर भवसिंधु तू तर जायेगा।।
जो शरण आया प्रभु की, वह सदा सुख पाएगा।
शब्दकार, स्वरकार, गायक : व्ही. एन. श्रीवास्तव 'भोला'
रचना: जियालाल वसंत
स्वरकार: श्री गजाधर प्रसाद श्रीवास्तव
गायक: श्री अतुल श्रीवास्तव
तुम कहाँ छुपे भगवान करो मत देरी |
दुःख हरो द्वारकानाथ शरण मैं तेरी ||
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी ||
यही सुना है दीनबन्धु तुम सबका दुख हर लेते |
जो निराश हैं उनकी झोली आशा से भर देते ||
अगर सुदामा होता मैं तो दौड़ द्वारका आता |
पाँव आँसुओं से धो कर मैं मन की आग बुझाता ||
तुम बनो नहीं अनजान, सुनो भगवान, करो मत देरी |
दुख हरो द्वारकानाथ शरण मैं तेरी ||
जो भी शरण तुम्हारी आता, उसको धीर बंधाते |
नहीं डूबने देते दाता, नैया पार लगाते ||
तुम न सुनोगे तो किसको मैं अपनी व्यथा सुनाऊँ |
द्वार तुम्हारा छोड़ के भगवन और कहाँ मैं जाऊँ ||
प्रभु कब से रहा पुकार, मैं तेरे द्वार, करो मत देरी |
दुख हरो द्वारकानाथ शरण मैं तेरी ||
Originally posted on 4/7/16
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प्रभु तुम अन्तर्यामी
दया करो, दया करो, हे स्वामी
अंग अंग में रंग सांवरा
गहरा होता जाये
मैं तो बस बिन मोल बिकानी
मन में तुम्ही समाये
लोग करें बदनामी
दया करो, दया करो, हे स्वामी
मन्द मन्द मुसकान मनोहर
मुख पर लट घुंघराली
अचरज क्या जो भई बावरी
देख के छवि मतवाली
बेल प्रीत की जामी
दया करो, दया करो, हे स्वामी
मैं गुणहीन, रिझाऊं कैसे
तुम को हे नटनागर
एक यही विशवास ह्रदय में
तुम हो दया के सागर
तीन लोक के स्वामी
दया करो, दया करो, हे स्वामी
Originally Published on Apr 22, 2015
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रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ ।
जनक लली, श्री लखन लला अरु महावीर के साथ ।।
वन्दन करते राम चरण अति हर्षित मन हनुमान ।
आतुर रक्षा करने को सज्जन भगतन के प्रान ।
अभयदान दे रहे मुझे करुणा सागर रघुनाथ ।।
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ ।।
मुझको भला कष्ट हो कैसे, क्यों कर पीड़ सताए ।
साहस कैसे करें दुष्ट जन, मुझ पर हाथ उठाए ।
अंग संग जब मेरे हैं संकटमोचन के नाथ ।।
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ ।।
विघ्न हरे, सद्गुरु के आश्रम स्वयं राम जी आये ।
शाप मुक्त कर दिया अहिल्या को पग धूर लगाये ।
वैसे चिंता मुक्त हमें कर रहे राम रघुनाथ ।।
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ ।।
रोम रोम श्रीराम बिराजे धनुष बाण ले हाथ ।
जनक लली, श्री लखन लला अरु महावीर के साथ ।।
अब मुझे राम भरोसा तेरा
राम भरोसा तेरा
अब मुझे राम भरोसा तेरा ॥
मुझे भरोसा राम का रहे सदा सब काल ।
दीनबन्धु वह देव है सुखकर दीन दयाल ॥
पकड़ शरण अब राम की सुदृढ निश्चय साथ ।
तज कर चिंता मैं फिरूँ पा कर उत्तम नाथ ॥
अब मुझे राम भरोसा तेरा
राम भरोसा तेरा
अब मुझे राम भरोसा तेरा ॥
मधुर महारस नाम पान कर, मुदित हुआ मन मेरा ॥
अब मुझे राम भरोसा तेरा
राम भरोसा तेरा
अब मुझे राम भरोसा तेरा ॥
जो देवे सब जगत को अन्न पान शुभ प्राण ।
वही दाता मेरा हरि सुख का करे विधान ॥
वन अटवी गिरि शिखर पर, घोर विपद के बीच ।
तज कर चिंता मैं फिरूँ, निर्भय आँखें मींच ॥
कष्ट क्लेश के काल में निंदा हो अपमान ।
राम भरोसे शांत रह सोऊँ चादर तान ॥
अब मुझे राम भरोसा तेरा
राम भरोसा तेरा
अब मुझे राम भरोसा तेरा ॥
दीपक ज्ञान जगा जब भीतर, मिटा अज्ञान अन्धेरा ।
निशा निराशा दूर हुई सब, आया शांत सबेरा ॥
अब मुझे राम भरोसा तेरा
राम भरोसा तेरा
अब मुझे राम भरोसा तेरा ॥
...... राम राम राम राम ......
मुझे भरोसा राम तू दे अपना अनमोल ।
रहूँ मस्त निश्चिंत मैं कभी न जाऊँ डोल ॥
मुझे भरोसा परम है राम राम श्री राम ।
मेरी जीवन ज्योति है वही मेरा विश्राम ॥
रचना: परम पूज्यनीय स्वामी श्री सत्यानन्द जी महाराज
स्वरकार एवं गायक: श्री अतुल श्रीवास्तव