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सोमवार, जून 09, 2025

हरि बिन क्यूँ जीऊँ री माय


हरि बिन क्यूँ जीऊँ री माय।

हरि कारण बौरी भई, जस काठहि घुन खाय।

औषध मूल न संचरै, मोहि लागौ बौराय।

कमठ दादुर बसत जलमँह, जलहि ते उपजाय।

हरि ढूढँन गई बन-बन, कहुँ मुरली धुन पाय।

मीरा के प्रभु लाल गिरधर, मिलि गये सुखदाय।

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