हर सांस में हर बोल में
हरि नाम की झंकार है .
हर नर मुझे भगवान है
हर द्वार मंदिर द्वार है ..
ये तन रतन जैसा नहीं
मन पाप का भण्डार है .
पंछी बसेरे सा लगे
मुझको सकल संसार है ..
हर डाल में हर पात में
जिस नाम की झंकार है .
उस नाथ के द्वारे तू जा
होगा वहीं निस्तार है ..
अपने पराये बन्धुओं का
झूठ का व्यवहार है .
मनके यहां बिखरे हुये
प्रभु ने पिरोया तार है ..
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1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर ,
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
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