तू ही बन जा मेरा माँझी, पार लगा दे मेरी नैया .
हे नटनागर, कृष्ण कन्हैया, पार लगा दे मेरी नैया ..
इस जीवन के सागर में, हर क्षण लगता है डर मुझको .
क्या भला है, क्या बुरा है, तू ही बता दे मुझको .
हे नटनागर, कृष्ण कन्हैया, पार लगा दे मेरी नैया ..
तू ही बन जा ...
क्या तेरा और क्या मेरा है, सब कुछ तो बस सपना है .
इस जीवन के मोहजाल में, सबने सोचा अपना है .
हे नटनागर, कृष्ण कन्हैया, पार लगा दे मेरी नैया ..
तू ही बन जा ...
गुरुवार, अगस्त 21, 2008
भजन : जय कृष्ण हरे
जय कृष्ण हरे श्री कृष्ण हरे .
दुखियों के दुख दूर करे जय जय जय कृष्ण हरे ..
जब चारों तरफ़ अंधियारा हो आशा का दूर किनारा हो .
जब कोई ना खेवन हारा हो तब तू ही बेड़ा पार करे .
तू ही बेड़ा पार करे जय जय जय कृष्ण हरे ..
तू चाहे तो सब कुछ कर दे विष को भी अमृत कर दे .
पूरण कर दे उसकी आशा जो भी तेरा ध्यान धरे .
जो भी तेरा ध्यान धरे जय जय जय कृष्ण हरे ..
दुखियों के दुख दूर करे जय जय जय कृष्ण हरे ..
जब चारों तरफ़ अंधियारा हो आशा का दूर किनारा हो .
जब कोई ना खेवन हारा हो तब तू ही बेड़ा पार करे .
तू ही बेड़ा पार करे जय जय जय कृष्ण हरे ..
तू चाहे तो सब कुछ कर दे विष को भी अमृत कर दे .
पूरण कर दे उसकी आशा जो भी तेरा ध्यान धरे .
जो भी तेरा ध्यान धरे जय जय जय कृष्ण हरे ..
मंगलवार, अगस्त 12, 2008
रघुकुल प्रगटे हैं रघुबीर ..
रघुकुल प्रगटे हैं रघुबीर ..
देस देस से टीको आयो रतन कनक मनि हीर .
घर घर मंगल होत बधाई भै पुरवासिन भीर .
आनंद मगन होइ सब डोलत कछु ना सौध शरीर .
मागध बंदी सबै लुटावैं गौ गयंद हय चीर .
देत असीस सूर चिर जीवौ रामचन्द्र रणधीर .
देस देस से टीको आयो रतन कनक मनि हीर .
घर घर मंगल होत बधाई भै पुरवासिन भीर .
आनंद मगन होइ सब डोलत कछु ना सौध शरीर .
मागध बंदी सबै लुटावैं गौ गयंद हय चीर .
देत असीस सूर चिर जीवौ रामचन्द्र रणधीर .
भजन - ठुमक चलत रामचंद्र
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां .. किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय . धाय मात गोद लेत दशरथ की रनियां .. अंचल रज अंग झारि विविध भांति सो दुलारि . तन मन धन वारि वारि कहत मृदु बचनियां .. विद्रुम से अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर . सुभग नासिका में चारु लटकत लटकनियां .. तुलसीदास अति आनंद देख के मुखारविंद . रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां ..
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सोमवार, अगस्त 11, 2008
भजन - श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन ..
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् . नवकञ्ज लोचन कञ्ज मुखकर कञ्जपद कञ्जारुणम् .. १.. कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम् . पटपीत मानहुं तड़ित रुचि सुचि नौमि जनक सुतावरम् .. २.. भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम् . रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम् .. ३.. सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणम् . आजानुभुज सर चापधर सङ्ग्राम जित खरदूषणम् .. ४.. इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम् . मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादिखलदलमञ्जनम् .. ५..
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