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प्रात पुनीत काल प्रभु जागे ।
अरुनचूड़ बर बोलन लागे ॥
प्रात काल उठि कै रघुनाथा ।
मात पिता गुरु नावइँ माथा ॥
मात पिता गुरु प्रभु कै बानी ।
बिनहिं बिचार करिय सुभ जानी ॥
सुनु जननी सोइ सुत बड़भागी ।
जो पितु मात बचन अनुरागी ॥
धरम न दूसर सत्य समाना ।
आगम निगम पुराण बखाना ।।
परम धर्म श्रुति बिदित अहिंसा ।
पर निंदा सम अघ न गरीसा ॥
पर हित सरिस धरम नहि भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ॥
पर हित बस जिन के मन माँहीं ।
तिन कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीँ ॥
गिरिजा संत समागम, सम न लाभ कछु आन ।
बिनु हरि कृपा न होइ सो, गावहिं वेद पुराण ॥
शुक्रवार, अक्टूबर 23, 2009
मानस से - पाई न केहिं गति
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पाई न केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना।
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना।।
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे।
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते।।1।।
रघुबंस भूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं।
कलि मल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावहीं।।
सत पंच चौपाईं मनोहर जानि जो नर उर धरै।
दारुन अबिद्या पंच जनित बिकार श्रीरघुबर हरै।।2।।
सुंदर सुजान कृपा निधान अनाथ पर कर प्रीति जो।
सो एक राम अकाम हित निर्बानप्रद सम आन को।।
जाकी कृपा लवलेस ते मतिमंद तुलसीदासहूँ।
पायो परम बिश्रामु राम समान प्रभु नाहीं कहूँ।।3।।
पाई न केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना।
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना।।
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे।
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते।।1।।
रघुबंस भूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं।
कलि मल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावहीं।।
सत पंच चौपाईं मनोहर जानि जो नर उर धरै।
दारुन अबिद्या पंच जनित बिकार श्रीरघुबर हरै।।2।।
सुंदर सुजान कृपा निधान अनाथ पर कर प्रीति जो।
सो एक राम अकाम हित निर्बानप्रद सम आन को।।
जाकी कृपा लवलेस ते मतिमंद तुलसीदासहूँ।
पायो परम बिश्रामु राम समान प्रभु नाहीं कहूँ।।3।।
भजन - जानकी नाथ सहाय करें जब ..
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जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..
सुरज मंगल सोम भृगु सुत बुध और गुरु वरदायक तेरो .
राहु केतु की नाहिं गम्यता संग शनीचर होत हुचेरो ..
दुष्ट दु:शासन विमल द्रौपदी चीर उतार कुमंतर प्रेरो .
ताकी सहाय करी करुणानिधि बढ़ गये चीर के भार घनेरो ..
जाकी सहाय करी करुणानिधि ताके जगत में भाग बढ़े रो .
रघुवंशी संतन सुखदायी तुलसीदास चरनन को चेरो ..
जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..
सुरज मंगल सोम भृगु सुत बुध और गुरु वरदायक तेरो .
राहु केतु की नाहिं गम्यता संग शनीचर होत हुचेरो ..
दुष्ट दु:शासन विमल द्रौपदी चीर उतार कुमंतर प्रेरो .
ताकी सहाय करी करुणानिधि बढ़ गये चीर के भार घनेरो ..
जाकी सहाय करी करुणानिधि ताके जगत में भाग बढ़े रो .
रघुवंशी संतन सुखदायी तुलसीदास चरनन को चेरो ..
शनिवार, अक्टूबर 10, 2009
मानस से - नवधा भक्ति
MP3 Audio (Kavita Krishnamurty)
प्रथम भगति संतन कर संगा |
दूसरि रति मम कथा प्रसंगा ||
गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान |
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तज गान ||
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा |
पंचम भजन सो बेद प्रकासा ||
छठ दम सील बिरति बहु करमा |
निरत निरंतर सज्जन धर्मा ||
सातव सम मोहि मय जग देखा |
मोते संत अधिक करि लेखा ||
आठव जथा लाभ संतोषा |
सपनेहु नहिं देखहि परदोषा ||
नवम सरल सब सन छनहीना |
मम भरोस हिय हरष न दीना ||
नव महुं एकउ जिन्ह कें होई ।
नारि पुरूष सचराचर कोई ॥
मम दरसन फल परम अनूपा |
जीव पाइ निज सहज सरूपा ||
सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम |
ते नर प्राण समान मम जिन के द्विज पद प्रेम ||
प्रथम भगति संतन कर संगा |
दूसरि रति मम कथा प्रसंगा ||
गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान |
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तज गान ||
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा |
पंचम भजन सो बेद प्रकासा ||
छठ दम सील बिरति बहु करमा |
निरत निरंतर सज्जन धर्मा ||
सातव सम मोहि मय जग देखा |
मोते संत अधिक करि लेखा ||
आठव जथा लाभ संतोषा |
सपनेहु नहिं देखहि परदोषा ||
नवम सरल सब सन छनहीना |
मम भरोस हिय हरष न दीना ||
नव महुं एकउ जिन्ह कें होई ।
नारि पुरूष सचराचर कोई ॥
मम दरसन फल परम अनूपा |
जीव पाइ निज सहज सरूपा ||
सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम |
ते नर प्राण समान मम जिन के द्विज पद प्रेम ||
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